द्वारका

द्वारका ज़िले, गुजरात राज्य, भारत के में स्थित एक प्राचीन नगर

द्वारका (Dwarka)' भारत के गुजरात राज्य के देवभूमि द्वारका ज़िले में स्थित एक प्राचीन नगर और नगरपालिका है। यह नगर गोमती नदी और अरब सागर के किनारे ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर स्थित है। द्वारका हिन्दुओं के चार धामों में से एक और सप्तपुरी (सात सबसे पवित्र प्राचीन नगरों) में से एक है। इसे भगवान श्रीकृष्ण की प्राचीन नगरी माना जाता है और गुजरात की पहली राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित है।

द्वारका एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल है। यह हिन्दुओं के चार धामों में से एक है और सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में गिना जाता है। यह सात पुरियों में से एक पुरी भी है। जिले का नाम द्वारका पुरी से रखा गया है, जिसकी स्थापना 2013 में की गई थी। यह नगरी भारत के पश्चिम में समुद्र के किनारे पर स्थित है। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान कृष्ण ने इसे बसाया था और यह उनकी कर्मभूमि है। द्वारका भारत के सात सबसे प्राचीन शहरों में से एक है।

काफी समय से जाने-माने शोधकर्ता पुराणों में वर्णित द्वारका के रहस्यों का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित कोई भी अध्ययन अभी तक पूरा नहीं हुआ है। 2005 में द्वारका के रहस्यों को उजागर करने के लिए एक अभियान शुरू किया गया था, जिसमें भारतीय नौसेना ने भी सहायता प्रदान की। इस अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छटे पत्थर और लगभग 200 अन्य नमूने एकत्र किए गए, लेकिन अब तक यह साबित नहीं हो सका है कि यह वही नगरी है जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था। वैज्ञानिक आज भी स्कूबा डायविंग के जरिए समुद्र की गहराइयों में छिपे इस रहस्य को सुलझाने में लगे हैं।

भगवान श्रीकृष्ण मथुरा में उत्पन्न हुए, लेकिन उन्होंने द्वारका में राज किया। यहीं से उन्होंने पूरे देश की बागडोर संभाली, पांडवों का साथ दिया, धर्म की विजय सुनिश्चित की और शिशुपाल और दुर्योधन जैसे अधर्मी राजाओं का अंत किया। द्वारका उस समय की राजधानी बन गई थी, जहां बड़े-बड़े राजा सलाह लेने आते थे। इस स्थान का धार्मिक महत्व तो है ही, साथ ही यह कई रहस्यों से भी घिरा हुआ है। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण की मृत्यु के साथ ही उनकी बसाई हुई नगरी समुद्र में डूब गई। आज भी यहाँ उस नगरी के अवशेष मौजूद हैं।

द हिन्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1963 में सबसे पहले द्वारका नगरी का उत्खनन डेक्कन कॉलेज पुणे, आर्कियोलॉजी विभाग और गुजरात सरकार ने मिलकर किया था। इस दौरान करीब 3000 साल पुराने बर्तन मिले थे। लगभग एक दशक बाद, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की अंडरवॉटर आर्कियोलॉजी विंग को समुद्र में तांबे के सिक्के और ग्रेनाइट संरचनाएं भी मिलीं।

द्वारका में घूमने लायक स्थल

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निकटवर्ती तीर्थ

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गोमती घाट

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द्वारका शहर में एक पवित्र गोमतीघाट है जहाँ कई मंदिर हैं, जिनमें गोमती माताजी का मंदिर भी शामिल है। गोमतीघाट पर स्नान का एक अद्वितीय महत्व है। इस घाट के नवीनीकरण के बाद, श्रद्धालुओं के लिए अधिक सुविधाएँ और सुरक्षा की व्यवस्था की गई है। गोमती नदी के किनारे एक शिव मंदिर है, और साथ ही घाट के आसपास भगवान राम, भगवान कृष्ण और कृष्ण के मित्र सुदामा के छोटे मंदिर भी हैं, जहाँ श्रद्धालु कम से कम 100 वर्षों से पूजा कर रहे हैं। यहाँ पर एक नाव किराए पर लेकर नदी के पार जाकर द्वारका का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है। गोमतीघाट नदी के मुहाने पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इन पवित्र जलों में स्नान करने से आत्मा की शुद्धि होती है।

निष्पाप कुण्ड

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सरकारी घाट के पास यह छोटा-सा सरोवर है, जो गोमती के खारे जल से भरा रहता है। यात्री पहले निष्पाप सरोवर में स्नान करके तब गोमती स्नान करते हैं। यहाँ पिंडदान भी किया जाता है। निष्पाप सरोवर के पास एक और छोटा कुंड है। उसके पास सांवलियाजी का मंदिर, गोवर्धननाथ जी का मंदिर और वल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक है। इसके आगे मीठे जल के पाँच कूप हैं, जिनसे यात्री स्नान और आचमन करते हैं। ये कूप गोमती के दक्षिण तट पर स्थित हैं।

रणछोड़ जी मंदिर

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चूना-पत्थर से निर्मित सात मंजिला द्वारकाधीश मंदिर की ऊंचाई लगभग 157 फीट है। बाहरी दीवारों पर कृष्ण की जीवन लीलाओं का चित्रण करते हुए सुंदर सजावट की गई है, जबकि आंतरिक भाग साधारण और सौम्य है। मंदिर के दो प्रवेश द्वार हैं। दक्षिण दिशा में स्थित द्वार को स्वर्ग द्वार कहा जाता है, जहाँ से तीर्थ यात्री आमतौर पर मंदिर में प्रवेश करते हैं। उत्तर दिशा में स्थित द्वार को मोक्ष द्वार कहा जाता है, जो गोमती नदी के 56 घाटों की ओर ले जाता है।

मंदिर के भीतर द्वारकाधीश जी की श्यामवर्ण चतुर्भुज मूर्ति विराजमान है। भगवान ने अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हुए हैं। बहुमूल्य अलंकरणों और सुंदर वेशभूषा से सजी यह प्रतिमा हर किसी का मन मोह लेती है।

मंदिर का शिखर 43 मीटर ऊँचा है, जिसके ऊपर एक बड़ा ध्वज लगा हुआ है, जिस पर सूर्य और चंद्रमा बने हुए हैं। यह ध्वज विश्व का सबसे बड़ा ध्वज है, जिसे 10 किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता है। यह ध्वज दिन में तीन बार बदला जाता है। इस अवसर पर ढोल-नगाड़ों की गूँज के साथ यहाँ का माहौल अत्यंत आध्यात्मिक एवं उत्सवी हो जाता है। श्रद्धालु भगवान की परिक्रमा करते हैं और उन पर फूल और तुलसी दल चढ़ाते हैं।

मन्दिर की परिक्रमा

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रणछोड़जी के दर्शन के बाद मंदिर की परिक्रमा की जाती है। मंदिर की दीवारें दोहरी हैं और दो दीवारों के बीच इतनी जगह है कि आदमी आसानी से समा सके। यही परिक्रमा का रास्ता है। रणछोड़जी के मंदिर के सामने एक बहुत लंबा-चौड़ा 100 फुट ऊँचा जगमोहन है। इसकी पाँच मंजिलें हैं और इसमें 60 खंभे हैं। रणछोड़जी के बाद इसकी परिक्रमा की जाती है। इसकी दीवारें भी दोहरी हैं। जय श्री कृष्णा।

ऋषि दुर्वासा मंदिर

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मंदिर की पूर्व दिशा में दुर्वासा ऋषि का मंदिर है।मंदिर के पूर्वी घेरे के भीतर ही मंदिर का भण्डार है और उसके दक्षिण में जगत गुरु शंकराचार्य का शारदा मठ है।

त्रिविक्रम मंदिर

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मंदिर के दक्षिण में भगवान त्रिविक्रम का मंदिर है इसमें राजा बलि तथा सनकादि चारों कुमारों की मूर्तियों के साथ-साथ गरुड़ जी की मूर्ति भी विराजमान है। मंदिर के उत्तर में प्रधुम्न जी की प्रतिमा और उसके पास ही अनिरुद्ध व बलदेव जी की मूर्तियां भी हैं।

कुशेश्वर मंदिर

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रणछोड़जी मंदिर के उत्तरी मोक्ष द्वार के निकट कुशेश्वर शिव मंदिर है यहाँ के दर्शन किए बिना यात्रा अधूरी मानी जाती है।

शारदा मठ

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शारदा मठ जिसे द्वारका पीठ के नाम से भी जाना जाता है यह भारत के गुजरात प्रदेश के सुमुद्रतटिय्य नगर द्वारका में स्थित एक मठ है। आदि गुरु शंकराचार्य ने भारत के चारों कोनों में चार मठ बनवाए थे, जिनमें से एक शारदा मठ था। यह मठ शंकराचार्य के परम्परागत आदेशानुसार सभी कार्यों का प्रबंधन करता है। भारतीय संस्कृति में सनातन धर्म के अनुयायियों द्वारा शंकराचार्य का बहुत महत्व है। रणछोड़जी मंदिर से शारदा मठ की परिक्रमा शुरू होती है, जो सीधे गोमती नदी के किनारे स्थित है। गोमती के नौ घाटों पर कई मंदिर स्थित हैं, जैसे कि सांवलियाजी का मंदिर, गोवर्धननाथजी का मंदिर, और महाप्रभुजी की बैठक।

हनुमान मंदिर

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आगे वासुदेव घाट पर हनुमानजी का मन्दिर है। आखिर में संगम घाट आता है। यहां गोमती समुद्र से मिलती है। इस संगम पर संगम-नारायणजी का बहुत बड़ा मन्दिर है।

चक्र तीर्थ

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संगम-घाट के उत्तरी ओर, समुद्र के ऊपर, चक्र तीर्थ नामक एक और घाट स्थित है। इसके समीप रत्नेश्वर महादेव का मंदिर है। उसके आगे सिद्धनाथ महादेवजी हैं, उसके बाद एक बावली है जिसे 'ज्ञान-कुण्ड' कहा जाता है। उसके आगे जूनीराम बाड़ी है, जिसमें राम, लक्ष्मण, और सीता की मूर्तियाँ हैं। उसके बाद एक और राम का मंदिर है, जो हाल ही में निर्मित हुआ है। फिर आती है सौमित्री बावली, जिसे लक्ष्मणजी की बावजी कहा जाता है। आखिर में काली माता और आशापुरी माता की मूर्तियाँ हैं।

गोपी तालाब

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गोपी तालाब एक मध्यम आकार की झील है जो द्वारका से लगभग 20 किलोमीटर दूर बेट द्वारका के रास्ते पर स्थित है। झील के पीछे की कहानी हमें भगवान कृष्ण के बचपन में ले जाती है जब वृंदावन की गोपियाँ उन्हें पूजती थीं। कृष्ण ने अपनी राजधानी द्वारका में स्थानांतरित की तो गोपियाँ उनका वियोग सहन नहीं कर सकीं। वे द्वारका में उनसे मिलने आईं और शरद पूर्णिमा के दिन रास रचाया। रास रचाने के बाद, उन्होंने इस भूमि की मिट्टी को अपना जीवन समर्पित कर दिया और भगवान कृष्ण में विलीन हो गईं। यहाँ की मिट्टी महीन और चिकनी है जिसका रंग पीला है और माना जाता है कि इसमें दैवीय गुण हैं जो कई बीमारियों को ठीक कर सकते हैं, खासकर त्वचा से संबंधित बीमारियों को। आज, कई पर्यटक अपनी यात्रा के प्रतीक के रूप में इस मिट्टी को खरीदते हैं, जिसे गोपी चंदन के नाम से जाना जाता है। गोपी तालाब के आसपास का पूरा क्षेत्र स्नान के लिए घाटों से बना है और उनके चारों ओर कई मंदिर हैं।

नागेश्वर मंदिर

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नागेश्वर मंदिर, द्वारका

नागेश्वर मन्दिर एक प्रसिद्द मन्दिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का भगवन शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में दसवां स्थान है। यह ज्योतिर्लिंग प्रमाणिक रूप से कहाँ स्थित है, यह विद्वानों के दावे - प्रतिदावे चलते रहने के कारण कहना आसान नहीं है, फिर भी गुजरात राज्य में गोमती द्वारका के बीच दारूकावन क्षेत्र में इसके प्रामाणिक स्थान होने की मान्यता अधिक है। शिव पुराण में गुजरात राज्य के भीतर ही दारूकावन क्षेत्र में स्थित ज्योतिर्लिंग को ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति में भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को दारूकावन क्षेत्र में ही वर्णित किया गया है। महात्म्य के अनुसार जो आदरपूर्वक इस शिवलिंग की उत्पत्ति एवं महात्म्य को सुनेगा और इसके दर्शन करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होकर समस्त सुखों को भोगता हुआ अंततः परमपद को प्राप्त होगा।

बेट द्वारका

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बेट द्वारका (जिसे बेयट द्वारका भी लिखा जाता है) या शंखोधर कच्छ की खाड़ी के मुहाने पर एक आबाद द्वीप है, जो भारत के गुजरात के ओखा शहर के तट से 2 किमी (1 मील) दूर और द्वारका शहर से 25 किमी (16 मील) उत्तर में स्थित है। उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर, यह द्वीप 8 किमी (5 मील) लंबा और औसतन 2 किमी (1 मील) चौड़ा है। द्वीप का नाम "शंखोधर" इस तथ्य से निकला है कि यह द्वीप शंख का एक बड़ा स्रोत है। बेट द्वारका को प्राचीन शहर द्वारका का हिस्सा माना जाता है। महाभारत और स्कंद पुराण जैसे भारतीय महाकाव्य साहित्य में, यह शहर भगवान् श्रीकृष्ण का निवास स्थान है। द्वारकाधीश मंदिर और श्री केशवरायजी मंदिर द्वीप पर कृष्ण के प्रमुख मंदिर हैं। अतिरिक्त तीर्थस्थलों में हनुमान दंडी मंदिर, वैष्णव महाप्रभु बेथक, और एक गुरुद्वारा शामिल हैं। अभय माता का छोटा मंदिर द्वीप के दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित है।

बेट द्वारका कैसे पहुँचें

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ओखा से फेरी सेवा द्वारा बेट द्वारका पहुंचा जा सकता है। इसके आलावा 2024 में ओखा और बेट द्वारका के बीच सुदर्शन सेतु (ओखा-बेट द्वारका सिग्नेचर ब्रिज) के नाम से मशहूर इस पुल का निर्माण पूरा हुआ है। जिसके से बेट द्वारका पहुंचा जा सकता है।

शंख तालाब

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रणछोड़ के मन्दिर से डेढ़ मील चलकर शंख-तालाब आता है। इस जगह भगवान कृष्ण ने शंख नामक राक्षस को मारा था। इसके किनारे पर शंख नारायण का मन्दिर है। शंख-तालाब में नहाकर शंख नारायण के दर्शन करने से बड़ा पुण्य होता है।

शिवराजपुर समुद्रतट

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Shivrajpur Beach

शिवराजपुर समुद्रतट(बीच), जिसे हाल ही में ब्लू फ्लैग बीच मान्यता मिली है, द्वारका (गुजरात) से 12 किलोमीटर दूर द्वारका-ओखा हाईवे पर स्थित है। गुजरात के सबसे प्रसिद्ध समुद्र तटों में से एक शिवराजपुर बीच, परिवार और बच्चों के साथ सप्ताहांत बिताने के लिए आदर्श स्थान है। इस समुद्र तट पर सफेद रेत की चमकदार सुंदर तलाओं से घिरी हुई है, जो नीले साफ पानी के साथ मिलकर एक अद्भुत नज़ारा प्रस्तुत करती है।

शिवराजपुर समुद्रतट पर गतिविधियाँ

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समुद्र तट पर की जाने वाली गतिविधियों में स्कूबा डाइविंग, स्नॉर्कलिंग, बोटिंग और द्वीप भ्रमण शामिल हैं।